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नज़्म
थकन दिन की समेटे शब को घर जाने पे कौन उस के
लिए दहलीज़ पर बैठा... दुआ की मिशअलें दिल में
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
नज़्म
पर-ए-तूती पे होता है दुम-ए-ताऊस का धोका
हवा से उड़ के बर्ग-ए-गुल जो सब्ज़े पर बिखरते हैं
नज़्म तबातबाई
नज़्म
बारगाह-ए-हक़ में हाज़िर हो के मैं ने की दुआ
पेट से मछली के यूनुस को किया तू ने रिहा
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
ख़म-ब-ख़म ज़ुल्फ़ों का वो चेहरे पे मेरे लोटना
भीनी भीनी निकहतों में डूब जाना याद है
हबीब जौनपुरी
नज़्म
दूर पहाड़ों के उस जानिब जलता सूरज रात के ख़ेमों में चुप बैठा
आने वाले कल की बाबत सोच रहा है
सलीम कौसर
नज़्म
मैं दरबारियों में तो क्या नौकरों के जिलौ में बहुत दूर बैठा
लिबास-ए-शाही का मदह-ख़्वाँ तो अब भी नहीं
जमीलुद्दीन आली
नज़्म
जहालत एक रोग है ख़ुदा इसे फ़ना करे
ख़ुदा की बारगाह में हर इक यही दुआ करे
मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर
नज़्म
मैं दूर कहीं तुम से बैठा इक दीप की जानिब तकता हूँ
इक बज़्म सजाए रक्खी है इक दर्द जगाए रखता हूँ
वसीम बरेलवी
नज़्म
सीमा ग़ज़ल
नज़्म
उठे हैं बहर-ए-दुआ कितने काँपते हुए हाथ
किस एहतिमाम से बाँधा गया है रख़्त-ए-सफ़र