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नज़्म
क्यों न तड़पाए हमें अपने वतन की हालत
सोज़-ए-दिल रखते हैं हम दर्द-ए-जिगर रखते हैं
सरदार नौबहार सिंह साबिर टोहानी
नज़्म
ख़्वाबों के गुलिस्ताँ की ख़ुश-बू-ए-दिल-आरा है
या सुब्ह-ए-तमन्ना के माथे का सितारा है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
लब पर नाम किसी का भी हो, दिल में तेरा नक़्शा है
ऐ तस्वीर बनाने वाली जब से तुझ को देखा है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
दिल की न पूछो क्या कुछ चाहे दिल का तो फैला है दामन
गीत से गाल ग़ज़ल सी आँखें साअद-ए-सीमीं बर्ग-ए-दहन
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
ऐ दिल-ए-नाशाद मुझ को तेरी वहशत देख कर
याद आ जाता है क़िस्सा क़ैस और फ़रहाद का
राज्य बहादुर सकसेना औज
नज़्म
नुमायाँ रंग-ए-पेशानी पे अक्स-ए-सोज़-ए-दिल कर दे
तबस्सुम-आफ़रीं चेहरे में कुछ संजीदा-पन भर दे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
दफ़'अतन दो नर्म-ओ-नाज़ुक हाथ शानों से लगे
बर्क़-ए-ख़िर्मन-सोज़ जैसे आशियाने पर गिरे
बर्क़ आशियान्वी
नज़्म
चमकते हुए सब बुतों को मिटा दो
कि अब लौह-ए-दिल से हर इक नक़्श हर्फ़-ए-ग़लत की तरह मिट चुका है
फ़ख़्र-ए-आलम नोमानी
नज़्म
ख़ून-ए-दिल देना पड़ा ख़ून-ए-जिगर देना पड़ा
अपने ख़्वाबों की हसीं परछाइयाँ देना पड़ीं