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नज़्म
शाम को जब अपनी ग़म-गाहों से दुज़्दाना निकल आते हैं हम?
या ज़वाल-ए-उम्र का देव-ए-सुबुक-पा रू-ब-रू
नून मीम राशिद
नज़्म
तारिक़ क़मर
नज़्म
क्या क्या अनार छोड़े हैं बिशनी हो रू-ब-रू
ऐ बी तुम अपनी कुल्हिया हमें छोड़ने को दो