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नज़्म
जहाँ हर-दम बला-रफ़्तार कारों और बसों की हम-नवा बन कर
मशीनें अहद-ए-हाज़िर का क़सीदा पढ़ती रहती हैं
अमीक़ हनफ़ी
नज़्म
बसों की छत पे लद कर दूध के बर्तन जो आते हैं
सरों पर शीर का बारान-ए-रहमत वो गिराते हैं