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नज़्म
अगर वो पल मुझे इक बार मिल जाए तो मैं पूछूँ
कि ये सौदा मिरे सर में समाया किस लिए तू ने
सलमान अंसारी
नज़्म
आओ अपने दिल में दर्द-ए-ला-दवा पैदा करें
शिद्दत-ए-ग़म में मसर्रत का मज़ा पैदा करें
मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा
नज़्म
जिस किसी ने इन दिनों कोई दवा ईजाद की
बस ये समझो उस ने इक बस्ती नई आबाद की
इस्मतुल्लाह इस्मत बेग
नज़्म
इन 'अक़्ल के बंदों में आशुफ़्ता-सरी क्यों है
ये तंग-दिली क्यों है ये कम-नज़री क्यों है
असद मुल्तानी
नज़्म
दिल है पहलू में तो पैदा शेवा-ए-तुरकाना कर
जौर हफ़्त-अफ़्लाक के होते रहें परवा न कर