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नज़्म
अभी तो आरज़ू-ए-वस्ल ने दोनों दिलों में घर बसाया था
अभी इस हिज्र के डर ने उसे बे-दख़्ल कर डाला
अमीक़ हनफ़ी
नज़्म
नज़र-नज़र में डार कर दिल-ओ-जिगर पे वार कर
तू ख़ुद भी बे-क़रार हो मुझे भी बे-क़रार कर
सदा अम्बालवी
नज़्म
वो जिन्हें मुझ से मोहब्बत भी है हमदर्दी भी है
मेरे इल्मी शौक़ को कहते हैं बे-कार-ओ-फ़ुज़ूल