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नज़्म
हुरमतुल इकराम
नज़्म
इस महीने में ग़ारत-गरी मनअ थी, पेड़ कटते न थे तीर बिकते न थे
बे-ख़तर थी ज़मीं मुस्तक़र के लिए
अख़्तर हुसैन जाफ़री
नज़्म
क्लीनर से यही कहता है शोफ़र हो के बेचारा
''कि कस नकशूद-ओ-नकशायद ब-हिकमत ईं मुअम्मा रा''