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नज़्म
अन-गिनत कहकशाओं के झुरमुट ने बे-इंतिहा दाएरे बुन दिए
और पाताल में जज़्ब रंगों ने उगले कई हलहले
इरफ़ान शहूद
नज़्म
मगर पछता रहा हूँ अब तिरी बे-ए'तिनाई पर
कि मैं ने क्यूँ मोहब्बत का सुनहरा ज़ख़्म खाया था