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नज़्म
तू ने रम्ज़-ए-क़ल्ब-ए-मख़्फ़ी आश्कारा कर दिए
मा'नी-ए-इल्म-ओ-अमल पर्दा से बे-पर्दा किए
बिलक़ीस जमाल बरेलवी
नज़्म
रूह में जिस ने भरी उर्दू के बे-जाँ जाम में
कैफ़-ए-एहसास-ए-अमल है जिस के हर पैग़ाम में
मयकश अकबराबादी
नज़्म
इक फ़क़ीर-ए-बे-नवा ईसार जिस की ज़िंदगी
जिस के हर क़ौल-ओ-अमल में अम्न का पैग़ाम था
साहिर होशियारपुरी
नज़्म
लहद में सो रही है आज बे-शक मुश्त-ए-ख़ाक उस की
मगर गर्म-ए-अमल है जागती है जान-ए-पाक उस की
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
फ़िक्र बे-नूर तिरा जज़्ब-ए-‘अमल बे-बुनियाद
सख़्त मुश्किल है कि रौशन हो शब-ए-तार-ए-हयात
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जो सय्याँ शौक़ से खाएँ वो सिवय्याँ ख़रीदेंगे
मुरक्कब सूद का सौदा ब-नक़्द-ए-जाँ ख़रीदेंगे