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नज़्म
घर ऐ दिल-ए-बे-क़रार ज़िंदाँ से कम नहीं क़ैद कौन काटे
हसीन सरमा का चाँद दीवाना-वार को बुला रहा है
अब्दुल अज़ीज़ फ़ितरत
नज़्म
मैं तड़प तड़प के ग़म में रही बे-क़रार-ओ-मुज़्तर
मिरे दिल की धड़कनों को नहीं सुन सका ज़माना