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नज़्म
राह-नवर्द-ए-शौक़ को रह में कैसे कैसे यार मिले
अब्र-ए-बहाराँ अक्स-ए-निगाराँ ख़ाल-ए-रुख़-ए-दिल-दार मिले
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
फ़रोग़-ए-चश्म है तस्कीन-ए-दिल है बे-गुमाँ उर्दू
हर इक आलम में है गोया बहार-ए-गुल-फ़िशाँ उर्दू
अलम मुज़फ़्फ़र नगरी
नज़्म
शिआर की जो मुदारात-ए-क़ामत-ए-जानाँ
किया है 'फ़ैज़' दर-ए-दिल दर-ए-फ़लक से बुलंद
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
घर ऐ दिल-ए-बे-क़रार ज़िंदाँ से कम नहीं क़ैद कौन काटे
हसीन सरमा का चाँद दीवाना-वार को बुला रहा है
अब्दुल अज़ीज़ फ़ितरत
नज़्म
बढ़ रही हैं गोद फैलाए हुए रुस्वाइयाँ
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हाँ सँभल जा अब कि ज़हर-ए-अहल-ए-दिल के आब हैं
कितने तूफ़ान तेरी कश्ती के लिए बे-ताब हैं
जोश मलीहाबादी
नज़्म
हुस्न बे-पर्दा हुआ है इश्क़ आवारा-मिज़ाज
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ