aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "be-ta.alluqii"
शाम होती है सहर होती है ये वक़्त-ए-रवाँजो कभी संग-ए-गिराँ बन के मिरे सर पे गिरा
अजीब सी बे-तअल्लुक़ी सेइक अजनबी बन के देखता हूँ
एक बे-तुकी नज़्मआज बिस्तर ही में हूँ
पेड़बे-तअल्लुक़ शाख़ पर बैठी है
और चार दीवारेंमुझ से बे-तअल्लुक़ सब
बे-तुकी मंज़र-कशीक्यूँ नहीं रख पाते हैं पर्चे का ये मेआर एक
एक इक तुक-बंद उस्तादों के मुँह आने लगालिख के सुब्ह-ओ-शाम नज़्में बे-तुकी से बे-तुकी
और ज़मीनों से तुम बे-तअल्लुक़ रहेरीढ़ की एक हड्डी पे तुम को बहुत नाज़ था
आज अज्नबिय्यत की बे-समर फ़ज़ाओं मेंहम कि एक दूजे से कितने बे-तअल्लुक़ हैं
बे-क़ुसूर आहेंकर रहीं सवाल
कब तलक बे-कसी का शिकवा रहेकब तलक बेबसी का नाला रहे
दो बजने को आए हैंऔर जनाज़ा भारी है
मेरा धुँदला धुँदला आँगनपिछले जनम की उन धूपों का
बचपन बीता खोई जवानीआया बुज़ुर्गी का मौसम
रोज़ उड़ा दे नींदतल्ख़ी भरा इक ख़्वाब
हर घड़ी वहशतेंदिल मिरा बद-गुमाँ
बे-सबब भी कभी कभी हँसनाजब भी हो बात कोई तल्ख़ी की
माज़ी की तल्ख़ यादेंफ़र्द-ए-बे-सिलसिला
सूना सूना है घरबे-असर बाम-ओ-दर
कब तलक उर्यां रहेंगे ये शजर गुल सब सफ़-ब-सफ़कब तलक रोएगी शबनम कब तलक हाँ कब तलक
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