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नज़्म
संसार के सारे मेहनत-कश खेतों से मिलों से निकलेंगे
बे-घर बे-दर बे-बस इंसाँ तारीक बिलों से निकलेंगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जागे हैं इफ़्लास के मारे उठे हैं बे-बस दुखियारे
सीनों में तूफ़ाँ का तलातुम आँखों में बिजली के शरारे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ज़माने मुझ से कहते थे ज़मीनें मुझ से कहती थीं
मैं इक बे-बस क़बीले का बहुत तन्हा मुसाफ़िर हूँ
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
काश तू अपने गरेबान में मुँह डाले अगर
तू वो बे-बस है कि माचिस का जो हो दस्त-ए-निगर