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नज़्म
शेर की ख़ाला बिल्ली उस को क्या क्या सबक़ पढाती है
खम्बा नोचने लगती है बेचारी जब खिसियाती है
जमील उस्मान
नज़्म
अभी तो तितलियाँ मैले परों से दर-ब-दर फिरती हैं बे-चारी
अभी तो चाँद भी ठंडक नहीं देता मोहब्बत की