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नज़्म
और इस के बा'द भी क़ुर्बानियाँ देते रहे
फिर भगत सिंह और साथी उस के सूली पर चढ़े
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
आज वो दिन है कि जिस दिन के लिए थे ख़ूँ बहे
चंद्र-शेखर और भगत-सिंह और फिर गाँधी के ख़ून
ख़याल अंसारी
नज़्म
बिना-ए-हुर्रियत की उस्तुवारी की थी जब हम ने
सर-ए-'दास'-ओ-भगत-सिंह दे दिए थे क़ब्ल नज़राना
टीका राम सुख़न
नज़्म
गिरी है बर्क़-ए-तपाँ दिल पे ये ख़बर सुन कर
चढ़ा दिया है भगत-सिंह को रात फाँसी पर
आफ़ताब रईस पानीपती
नज़्म
वो 'भगत-सिंह' अब भी जिस के ग़म में दिल नाशाद है
उस की गर्दन में जो डाला था वो फंदा याद है
जोश मलीहाबादी
नज़्म
हैं भगत सिंह के अहबाब की नज़रों में हुज़ूर
इन के मिटने के हैं आसार इन्हें कुछ न कहो
हिलाल रिज़वी
नज़्म
इन से मिलिए ये हैं असलम गामा के उस्ताद हैं
दारा सिंह और भोलू के भी दाओ सब इन को याद हैं