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नज़्म
नाम ले कर देश-भक्ति का जो ख़ूँ-रेज़ी करे
कैसी साज़िश कैसी नफ़रत उस दिल-ए-क़ातिल में है
अख़्तर हुसैन शाफ़ी
नज़्म
इंसान की क़िस्मत गिरने लगी अजनास के भाव चढ़ने लगे
चौपाल की रौनक़ घुटने लगी भरती के दफ़ातिर बढ़ने लगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
गुलज़ार
नज़्म
दरिया में उन के मुर्दे बहाती है मुफ़्लिसी
बीबी की नथ न लड़कों के हाथों कड़े रहे