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नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
महबूब नशे में छकते हों तब देख बहारें होली की
हो नाच रंगीली परियों का बैठे हों गुल-रू रंग-भरे
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
आज-कल भूले हुए हैं सब इलेक्शन और डिबेट
प्रैक्टीकल की कापियों के आज-कल भरते हैं पेट
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
नज़र से गुफ़्तुगू होती थी दम उल्फ़त का भरते थे
न माथे पर शिकन होती न जब तेवर बदलते थे