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नज़्म
कि भेदों-भरी रौशनी का निशाँ हैं?
कभी ताक़-ए-जाँ पर सँभाले थे तुम ने मआनी जो गुम हो गए थे
आरिफ़ा शहज़ाद
नज़्म
दिल के भेदों को भी मंतिक़ में जो उलझाते हैं
यूँ समझ लें कि बबूलों में भी फूल आते हैं
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
कब तक अंधी भेड़ों की तरह ये अपनी राह न पाएगा
कब तक मौत के आगे से पीछे ही हटता जाएगा
सय्यद एहतिशाम हुसैन
नज़्म
इक चरवाहा भेड़ें ले कर जिन के नीचे बैठा था
सर पर मैला साफ़ा था और कुल्हाड़ी थी हाथों में
अली अकबर नातिक़
नज़्म
मेरे नथुने फ़क़त भेड़ों की बॉस चख सकते हैं
होंट के कोने में गंधक ने ताऊन का टुकड़ा रखा
हसन अल्वी
नज़्म
अपनी भेड़ों बकरियों में कर लिया शामिल मुझे
आप के हाथों ने समझा मार के क़ाबिल मुझे