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नज़्म
गुलज़ार
नज़्म
बहू कहे अपना घर कैसा याँ तो अपने भी हैं पराए
सास कहे जल-भुन के उसे तो राज-महल भी रास न आए
मीराजी
नज़्म
इफ़्तेख़ार जालिब
नज़्म
हमारा ख़ून भी सच-मुच का सेहने पर बहा होगा
है आख़िर ज़िंदगी ख़ून अज़-बुन-ए-नाख़ुन बर-आवर-तर
जौन एलिया
नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
बीतेंगे कभी तो दिन आख़िर ये भूक के और बेकारी के
टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर दौलत की इजारा-दारी के
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जब फ़िक्र-ए-दिल-ओ-जाँ में फ़ुग़ाँ भूल गई है
हर शब वो सियह बोझ कि दिल बैठ गया है