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नज़्म
संसार के सारे मेहनत-कश खेतों से मिलों से निकलेंगे
बे-घर बे-दर बे-बस इंसाँ तारीक बिलों से निकलेंगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
उम्र-ए-रफ़्ता के किसी ताक़ पे बिसरा हुआ दर्द
फिर से चाहे कि फ़रोज़ाँ हो तो हो जाने दो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
और फिर गुलशन-ओ-सहरा के बीचों-बीच दिल की सल्तनत में ख़ाक उड़ाएँगे
बहुत मुमकिन है वो उजलत में आए
सलीम कौसर
नज़्म
हर वक़्त मगर पढ़ते रहना कम-उम्रों का तो काम नहीं
सब अपनी अपनी कुर्सी पर सुध-बुध बिसराए बैठे हैं
शौकत परदेसी
नज़्म
एक दिन हम भी तिरी आँखों के बीमारों में थे
तेरी ज़ुल्फ़-ए-ख़म नजम के नौ-गिरफ़्तारों में थे
जोश मलीहाबादी
नज़्म
हम ने इन आली बिनाओं से किया अक्सर सवाल
आश्कारा जिन से उन के बानियों का है जलाल