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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ख़ुश्क अश्कों की नदी ख़ून की ठहरी हुई धार
भूले-बिसरे हुए लम्हात के सूखे हुए ख़ार
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
भूले-बिसरे चेहरे आँखें मलते उठते हैं
और मैं ठंडे दरवाज़े से लग कर सो जाता हूँ