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नज़्म
इस जगह मेरे ख़्वाबों को आँखें मिलीं
और मेरी मोहब्बत के बोसों ने अपने हसीन होंट हासिल किए
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
दश्त-ओ-दमन में कोह कमर में बिखरे हुए हैं फूल ही फूल
रु-ए-निगार-ए-गीती पर हैं सब्त मिरे बोसों के निशाँ
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
या सहर के सीम-गूँ रुख़्सार पर पहली किरन
सुर्ख़ होंटों से बिछाए जिस तरह बोसों के जाल
इब्न-ए-सफ़ी
नज़्म
क़दम बोसों के भयानक ग़ोल को जो दीमक-ओ-जरासीम की सूरत
निज़ाम-ए-फिक्र-ओ-फ़न बरबाद करता है