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नज़्म
ना'त-ए-नबी पे इस्मत-ए-आवारा नुक्ता-चीं
ख़ौफ़-ए-ख़ुदा था ज़ोहरा-वशों में घिरा हुआ
शोरिश काश्मीरी
नज़्म
किसी शहनाज़-ए-लाला-रुख़ का काशाना
तो क्या हम्द ओ सलाम ओ नात लिक्खूँ ये नहीं मुमकिन
सलाम मछली शहरी
नज़्म
दुख़्तरान-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत रक़्स फ़रमाती रहीं
इस नई तहज़ीब में कल्चर इसी का नाम है
शोरिश काश्मीरी
नज़्म
ब-सद ग़ुरूर ब-सद फ़ख़्र-ओ-नाज़-ए-आज़ादी
मचल के खुल गई ज़ुल्फ़-ए-दराज़-ए-आज़ादी