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नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
ब-ईं इनआम-ए-वफ़ा उफ़ ये तक़ाज़ा-ए-हयात
ज़िंदगी वक़्फ़-ए-ग़म-ए-ख़ाक-नशीनां कर दे
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
बे-कराँ आसमानों की पिहनाइयाँ बे-नशेमन शिकस्ता परों की तग-ओ-ताज़ पर बैन करती रहीं
और हवा चुप रही
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
ख़ुद को बहलाना था आख़िर ख़ुद को बहलाता रहा
मैं ब-ईं सोज़-ए-दरूँ हँसता रहा गाता रहा
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
दरस-ए-सुकून-ओ-सब्र ब-ईं एहतिमाम-ए-नाज़
निश्तर-ज़नी-ए-जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ लिए हुए
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
वो बा-ईं कम-सिनी क्या ये न दिल में सोचता होगा
कि बाजी ने हमारी अपने ख़त में क्या लिखा होगा
अख़्तर शीरानी
नज़्म
याँ ब-ईं आलिम ग़ुरूर-ए-यूसुफ़ियत भी नहीं
वाँ ज़ुलेख़ाई ब-अज़्म-ए-चाक-दामानी है आज