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नज़्म
अभी फ़ज़ाओं में रक़्साँ है बन के नग़्मा-ए-शौक़
ख़याल की वो बुलंदी-ए-नज़र की वो परवाज़
मयकश अकबराबादी
नज़्म
वो बच्चे हैं क्या अच्छे ऐ 'मेहर' जो पढ़ते हैं
कलियाँ भी खिलौना भी टॉफ़ी भी मिठाई भी
मेहर रुदाैलवी
नज़्म
मोहब्बत के बुलंद-ओ-बाग दा'वे सब ही करते हैं
मोहब्बत की असली मेराज को कब कोई समझा है
अफ़रोज़ रिज़वी
नज़्म
सच है 'अफ़ज़ल' को तिरे इश्क़ ने बर्बाद किया
मर्तबा इस का भी था वर्ना बुलंद-ओ-बाला