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नज़्म
यहाँ सज्दा वहाँ सज्दा न का'बा है न बुत-ख़ाना
न जाने कर रहा है क्या किसी मस्ती में मस्ताना
अशरफ़ बाक़री
नज़्म
उलूम-ए-नौ से रौशन बज़्म है तहज़ीब-ए-हाज़िर की
यद-ए-तज्दीद ने ढाला है दिल-आवेज़ बुत-ख़ाना
बेबाक भोजपुरी
नज़्म
लक्ष्मी की मोहब्बत ने दिल मोह लिया इतना
मुँह मोड़ के का'बे से पहुँचे सू-ए-बुत-ख़ाना
ज़रीफ़ लखनवी
नज़्म
मैं उस को का'बा-ओ-बुत-ख़ाना में क्यूँ ढूँडने निकलूँ
मिरे टूटे हुए दिल ही के अंदर है क़याम उस का
ज़फ़र अली ख़ाँ
नज़्म
बुत-गर भी तू ख़ुद बुत भी तू बुत-ख़ाना भी तू है
बुत बन के मिरे सीना को बुत-ख़ाना बना दे
नारायण दास पूरी
नज़्म
मैं उस वादी के ज़र्रे ज़र्रे पर सज्दे बिछा दूँगा
जहाँ वो जान-ए-काबा अज़्मत-ए-बुत-ख़ाना रहती थी
अख़्तर शीरानी
नज़्म
कभी ऐ 'नूर' बुत-ख़ाने को का'बे में निहाँ देखा
कभी का'बे में पोशीदा नज़र बुत-ख़ाना आता है
नूर लुधियानवी
नज़्म
कितने दिल-कश मिरे बुत-ख़ाना-ए-ईमां के सनम
वो कलीसाओं के आहू वो ग़ज़ालान-ए-हरम