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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
वो बादल सर पे छाए हैं कि सर से हट नहीं सकते
मिला है दर्द वो दिल को कि दिल से जा नहीं सकता
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मिरे अफ़्कार पे ये कैसी वीरानी सी छाई है
बहुत कुछ सोचता हूँ फिर भी अब सोचा नहीं जाता
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
क्यूँ निगाहों पर मिरी छाए हैं आँसू के नक़ाब
इस सवाल-ए-मुस्तक़िल का क्यूँ नहीं मिलता जवाब
मीराजी
नज़्म
ग़म के बादल ख़ातिर-ए-नाज़ुक पे हैं छाए हुए
आरिज़-ए-रंगीं हैं या दो फूल मुरझाए हुए