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नज़्म
अभी कल तक जब उस के अब्रूओं तक मू-ए-पेचाँ थे
अभी कल तक जब उस के होंट महरूम-ए-ज़नख़दाँ थे
मजीद अमजद
नज़्म
लो वो चाह-ए-शब से निकला पिछले-पहर पीला महताब
ज़ेहन ने खोली रुकते रुकते माज़ी की पारीना किताब