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नज़्म
वो सब इक बर्फ़ानी भाप की चमकीली और चक्कर खाती गोलाई थे
सो मेरे ख़्वाबों की रातें जलती और दहकती रातें
जौन एलिया
नज़्म
जो और को डाले चक्कर में फिर वो भी चक्कर खाता है
जो और को ठोकर मार चले फिर वो भी ठोकर खाता है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
तुम्हारा हूँ तुम अपनी बात मुझ से क्यूँ छुपाते हो
मुझे मालूम है जिस के लिए चक्कर लगाते हो
नज़ीर बनारसी
नज़्म
शौकत परदेसी
नज़्म
हर एक मकाँ में सर्दी ने आ बाँध दिया हो ये चक्कर
जो हर दम कप-कप होती हो हर आन कड़ाकड़ और थर-थर
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
आह वो चक्कर दिए हैं गर्दिश-ए-अय्याम ने
खोल कर रख दी हैं आँखें तल्ख़ी-ए-आलाम ने
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
लो ईद आई लो दो पुलिए मैदान में भर बाज़ार लगा
हर चाहत का सामान हुआ हर ने'मत का अम्बार लगा
सय्यद ज़मीर जाफ़री
नज़्म
मरी हुई बकरी के थनों से इस के पाँचों बच्चे
दूध की आख़िरी बूँद तक निचोड़ लेने के चक्कर में