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नज़्म
जो ऐवानों में रहते थे वो बे-घर हो गए सारे
जो अपने वक़्त के क़ारूँ थे बे-ज़र हो गए सारे
बिर्ज लाल रअना
नज़्म
नहीफ़-ओ-ज़ार पाबंद-ए-सलासिल बे-ज़र-ओ-बे-पर
है कितनी जाँ-गुदाज़-ओ-दिल-शिकन तस्वीर भारत की
नो बहार साबिर
नज़्म
अब तो नहीं है कोई दुनिया में हम-सर उस के
अज़-माह-ताब-ए-माही बंदे हैं बे-ज़र उस के
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
और ये ज़र्द से रुख़्सार ये अश्कों की क़तार
मुझ से बे-ज़ार मिरी अर्ज़-ए-वफ़ा से बे-ज़ार