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नज़्म
अब हैरत की उँगली थामे तू इक ऐसे देस गई है
जिस के सब बाज़ार और गलियाँ, सारे घर और सब चौबारे
बिलाल अहमद
नज़्म
जाने फिर भी वो तलवार की धार पे कैसे चल सकता है
मैं इस भीड़ में चौराहे पर तन्हा बैठा सोच रहा हूँ
अज़ीज़ क़ैसी
नज़्म
उस के बहके क़दम करें धरती के दिल से बातें
गली गली में चौराहे पर भीड़ हो या हो तन्हाई
नियाज़ हैदर
नज़्म
गीत हमारे भटक रहे हैं नफ़रत के सहराओं में
लाश पड़ी है मानवता की दुनिया के चौराहे पर