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नज़्म
शायद इस झोंपड़े की छत पे ये मकड़ी मिरी महरूमी की
जिसे तनती चली जाती है वो जाला तो नहीं हूँ मैं भी?
नून मीम राशिद
नज़्म
लो वो चाह-ए-शब से निकला पिछले-पहर पीला महताब
ज़ेहन ने खोली रुकते रुकते माज़ी की पारीना किताब
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
सब्ज़ा सब्ज़ा सूख रही है फीकी ज़र्द दोपहर
दीवारों को चाट रहा है तन्हाई का ज़हर