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नज़्म
मोहब्बत जब चमक उठती थी उस की चश्म-ए-ख़ंदाँ में
ख़मिस्तान-ए-फ़लक से नूर की सहबा छलकती थी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ये चमकती हुई काली आँखें
मिरे काँपते होंट मेरी छलकती हुई आँख को देख कर कितनी हैरान हैं
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
छलकती है जो तेरे जाम से उस मय का क्या कहना
तिरे शादाब होंटों की मगर कुछ और है साक़ी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मुझे भी तो 'सिकंदर' के जनाज़े में पहुँचना है
मुझे भी आब-ए-हैवाँ से छलकती मौत का नौहा सुनाना है
अब्बास ताबिश
नज़्म
दिल के सहरा-ए-वफ़ा में है ग़ज़ालों का हुजूम
और उस चाँद के प्याले से छलकती है मिरी प्यास अभी
राही मासूम रज़ा
नज़्म
छलकती आँखों में ज़िंदगी के जो बच गए हैं वो ख़्वाब ढूँडें
भटकती गलियों में आबलों के गुलाब देखें
ख़ालिद मलिक साहिल
नज़्म
छलकती थीं तिरे दिल की अदाएँ भी निगाहों से
बला का दर्द होता था तिरी ख़ामोश आहों में