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नज़्म
मुज़्तरिब-बाग़ के हर ग़ुंचे में है बू-ए-नियाज़
तू ज़रा छेड़ तो दे तिश्ना-ए-मिज़राब है साज़
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ऐ इश्क़ न छेड़ आ आ के हमें हम भूले हुओं को याद न कर
पहले ही बहुत नाशाद हैं हम तू और हमें नाशाद न कर
अख़्तर शीरानी
नज़्म
गर्मी-ए-रुख़्सार से दहकी हुई ठंडी हवा
नर्म ज़ुल्फ़ों से मुलाएम उँगलियों की छेड़-छाड़
परवीन शाकिर
नज़्म
वो इक मिज़राब है और छेड़ सकती है रग-ए-जाँ को
वो चिंगारी है लेकिन फूँक सकती है गुलिस्ताँ को
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
गुनगुना के मस्ती में साज़ ले लिया मैं ने
छेड़ ही दिया आख़िर नग़्मा-ए-वफ़ा मैं ने
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
महफ़िल-ए-नौ में पुरानी दास्तानों को न छेड़
रंग पर जो अब न आएँ उन फ़सानों को न छेड़
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तज़्किरा देहली-ए-मरहूम का ऐ दोस्त न छेड़
न सुना जाएगा हम से ये फ़साना हरगिज़
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
हाँ वो नग़्मा छेड़ जिस से मुस्कुराए ज़िंदगी
तो बजा-ए-साज़-ए-उल्फ़त और गाए ज़िंदगी