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नज़्म
दिल में अरमाँ है कि आ जाएँ वतन में रघुबिर
याद में उन की कलेजे में चुभे हैं नश्तर
आफ़ताब रईस पानीपती
नज़्म
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
सब्र से शुक्र-ओ-रज़ा के बंद हुजरों में बंधा
बैठा रहा और हल्क़ में जब प्यास के काँटे चुभे तो
सत्यपाल आनंद
नज़्म
वो चाहे अजनबी हो, यही लगता है वो मेरे वतन का है
बड़ी शाइस्ता लहजे में किसी से उर्दू सुन कर
गुलज़ार
नज़्म
गुलशन-ए-याद में गर आज दम-ए-बाद-ए-सबा
फिर से चाहे कि गुल-अफ़शाँ हो तो हो जाने दो