aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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हक़ बात पे कोड़े और ज़िंदाँ बातिल के शिकंजे में है ये जाँइंसाँ हैं कि सहमे बैठे हैं खूँ-ख़्वार दरिंदे हैं रक़्साँ
गर्म लोहे से तुम्हारे जिस्म दागे़ जाएँगेतुम को कोड़े मार कर उल्लू बनाया जाएगा
हम जान पाए हैंबहुत कुछ है जिसे अब भी हमें डीकोड करना है
नाम भूल जाते हैंकोड याद रहते हैं
मुबारक वो साअत कि जब बर्क़ के कोड़े लहरातीलोहे की चीलों से और
जुमले मेंइक कोड की तरह
दुखते हुए सीनों की ख़ुश्बू के हाथों मेंउन जलते ख़्वाबों के लहराते कोड़े हैं
के मेरी रूह पर कोड़े कोई बरसा रहा हैबदन यूँ सर्द है
सब मुझ पर कोड़े बरसातेले जा रहें हैं अजनबी से मक़ाम पर
जिन्हें दोज़ख़ की आग रोज़ जलाएगीजिन पर ग़ैज़-ओ-ग़ज़ब के कोड़े हर साअ'त बरसाए जाएँगे
और छकड़े में जुता रेंग रहा है ताज़ीज़ख़्म ही ज़ख़्म है कोड़े का ज़ि-सर ता-ब-कमर
मवेशियों का चाराकोड़े मारता रहता है माँ बाप की ज़ख़्मी रूह को बरहना कर के
ज़ेहन दिल जिस्म हर इक चीज़ चमक उठती हैमार कर कोड़े कोई जैसे उठा देता है
औरतें ना-महरम के साथ नज़र आएँ तोकोड़े और पत्थर मारे जाएँगे
चारागरोब्लू कोड
दिलों पे जफ़ाओं के कोड़े पड़ेंगेनिगाहों से नमनाक मोती झडेंगे
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गिराँरूई की तरह उड़ जाएँगे
सरिश्त-ए-इश्क़ ने उफ़्तादगी नहीं पाईतू कद्द-ए-सर्व न बीनी ओ साया-पैमाई
अगर उस्मानियों पर कोह-ए-ग़म टूटा तो क्या ग़म हैकि ख़ून-ए-सद-हज़ार-अंजुम से होती है सहर पैदा
बढ़े जा ये कोह-ए-गिराँ तोड़ करतिलिस्म-ए-ज़मान-ओ-मकाँ तोड़ कर
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