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नज़्म
उसूल-ए-मेहर-ओ-उल्फ़त से न वो ग़ाफ़िल न मैं ग़ाफ़िल
दबिस्तान-ए-मोहब्बत में न वो जाहिल न मैं जाहिल
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
फ़ना तालीम दरस-ए-बे-ख़ुदी हूँ इस ज़माने से
कि मजनूँ लाम अलिफ़ लिखता था दीवार-ए-दबिस्ताँ पर
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
सुनो गर सुन सको तुम दास्तान-ए-ख़ूँ-चकाँ मेरी
रुला देगी मगर आँसू लहू के दास्ताँ मेरी