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नज़्म
हुए अहरार-ए-मिल्लत जादा-पैमा किस तजम्मुल से
तमाशाई शिगाफ़-ए-दर से हैं सदियों के ज़िंदानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इसी के सब करिश्मे ये नज़र आते हैं दुनिया में
इसी के दम से रौनक़ आलम-ए-इम्काँ की है सारी
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
दूरी तेरी भड़काए है अब तो मन में डाह
और हमारे होंटों का हर शब्द बना है आह
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
नज़्म
ऐ गुल-ए-रंगीं-क़बा ऐ ग़ाज़ा-ए-रू-ए-बहार
तू है ख़ुद अपने जमाल-ए-हुस्न का आईना-दार
मुईन अहसन जज़्बी
नज़्म
तब मैं अपने आप से भी नज़रें चुरा लेती हूँ
इस तकलीफ़-दह अमल से जब कुछ हासिल नहीं होता
आलिया मिर्ज़ा
नज़्म
पयाम-ए-ज़िंदगी कुछ हौसला-सामाँ भी होता हो
बहार-ए-ज़िंदगी ग़ैरत-दह-ए-जन्नत तो हो लेकिन