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नज़्म
आज भी है जुनूँ मिरा दैर-ओ-हरम पे ख़ंदा-ज़न
आज भी मुझ से बद-हवास दैर-ओ-हरम के पासबाँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ये चीख़ती हुई रूहें ये हसरतों के सनम
ये बज़्म-ए-कुफ़्र-ओ-यक़ीं ये जहान-ए-दैर-ओ-हरम
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
दैर-ओ-हरम पे भी नहीं ये राज़ मुन्कशिफ़
हर्फ़-ए-अज़ल है कौन जो मा'ना-फ़रोश है
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
मुझे शिकवा नहीं दैर-ओ-हरम के आस्तानों से
वो जिन के दर पे की है मुद्दतों मैं ने जबीं-साई