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नज़्म
आज तो हम बिकने को आए, आज हमारे दाम लगा
यूसुफ़ तो बाज़ार-ए-वफ़ा में, एक टिके को बिकता है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
सुब्ह-दम बाद-ए-सबा की शोख़ियाँ काम आ गईं
लाला-ओ-गुल को बग़ल-गीरी का मौक़ा मिल गया
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
गुलशन-ए-याद में गर आज दम-ए-बाद-ए-सबा
फिर से चाहे कि गुल-अफ़शाँ हो तो हो जाने दो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मालिक-ए-अर्ज़-ओ-समा को याद करता है जहाँ
हम्द गाती है ज़मीं तस्बीह पढ़ता आसमाँ
मोहम्मद असदुल्लाह
नज़्म
बढ़ेगा जानिब-ए-मंज़िल ये कारवाँ इक दिन
फ़ज़ा-ए-अर्ज़-ओ-समा होगी हम-इनाँ इक दिन
मसूद अख़्तर जमाल
नज़्म
नक़्श-ए-पा तेरा रहा मंज़िल-नुमा तहज़ीब का
राहत-ए-अर्ज़-ओ-समा पिन्हाँ तिरी मंज़िल में है
अख़्तर हुसैन शाफ़ी
नज़्म
ज़ेहन ओ दिल का फ़ासला तय करते करते हाँप जाए
वुसअत-ए-अर्ज़-ओ-समा इक दीदा-ए-हैरान है