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नज़्म
ग़ैर की बस्ती है कब तक दर-ब-दर मारा फिरूँ
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
बता क़ौम-ए-ग़ाफ़िल ये क्या माजरा है
तिरे बच्चे क्यों दर-ब-दर माँगते हैं