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नज़्म
मैं इस शहर-ए-ख़राबी में फ़क़ीरों की तरह दर दर फिरा बरसों
उसे गलियों में सड़कों पर
अर्श सिद्दीक़ी
नज़्म
वो गली-कूचों में फिरते हैं परेशाँ दर दर
ख़ाक भी मिलती नहीं उन को कि डालें सर पर
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
नज़्म
दौलत-ए-फ़क़्र अमीरों में नहीं मिलती अब
फिरते हैं झाँकते दर-दर फ़ुक़रा तेरे बाद