aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "dasht-e-be-taraf"
मैं अज़ान दे रहा हूँकिसी दश्त-ए-बे-अमाँ में
दश्त-ए-बे-नख़ील मेंबाद-ए-बे-लिहाज़ ने
टोलियाँ आती हैं नौ-उम्र तमन्नाओं कीदश्त-ए-बे-रंग-ए-ख़मोशी में मचाती हुई शोर
टूट कर सराबों मेंदश्त-ए-बे-अमाँ मंज़र
मुद्दत हुईदश्त-ए-बे-माजरा की ख़मोशी में
दश्त-ए-बे-आसमाँ के बासी हैंहम जो दामन में कुछ नहीं रखते
वो नर्म-रौ सूरत-ए-सबा थीख़याल के दश्त-ए-बे-फ़ज़ा में
दश्त-ए-बे-रंग से दर्द के फूल चुनती हुई ज़िंदगीख़ौफ़-ए-वामांदगी से ख़जिल
कि रेज़ा रेज़ा जम्अ' की हुई मता-ए-ज़ीस्त कोहवा-ए-तुंद फेंक आए दश्त-ए-बे-सवाद में
दश्त-ए-बे-दीवार में अपने सफ़र का नींद से आग़ाज़ करते थेऔर उन की उँगलियाँ सहराई साँपों की तरह उन के बदन पर रेंगती थीं
मैं वही क़तरा-ए-बे-बहर वही दश्त-ए-नवर्दअपने काँधों पे उठाए हुए सहरा का तिलिस्म
दश्त-ए-गर्म-ओ-सर्द में ये बे-दयारों का हुजूमबे-ख़बर माहौल से
दश्त-ए-दिल में आज कौनफ़ील-ए-बे-ज़ंजीर की मानिंद फिर
यही है मक़्तल-ए-बे-आब रेग-ए-दश्त-ए-बलाजहाँ पे तिश्ना-लबाँ एड़ियाँ रगड़ते हुए
दश्त-ए-तासीर की बे-गोश पनाहों में कहींजाने किस
इक शहर-ए-वहम-ओ-गुमाँदश्त-ए-ला-मरकज़िय्यत की बे-सम्ती-ए-फ़िक्र का हर इकाई शिकार
कैसा सुनसान है दश्त-ए-आवारगीहर तरफ़ धूप है हर तरफ़ तिश्नगी
हर तरफ़ कर्ब-ओ-बला है अब भीदश्त-ए-इम्कान में जारी है
गूँगी है तेरी क़ुदरत मंज़र हैं उस के बे-जाँबे-कार है अगर तो दश्त-ओ-जबल बसाए
दश्त-ओ-सहरा में वो बे-बाक मिरी ग़ामज़नीतुझ से जब आँख लड़ी गो ये मंज़िल थी कड़ी
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