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नज़्म
सरज़मीन-ए-हिन्द को जन्नत बनाने के लिए
कैसे कैसे दस्त-ओ-बाज़ू के शजर जाते रहे
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
जिस के हर जुर'ए में मय-ख़ाना उमँड आता था
दस्त-ए-साक़ी में वो साग़र न रहा तेरे बा'द
बिस्मिल सईदी
नज़्म
कहीं नहीं है कहीं भी नहीं लहू का सुराग़
न दस्त-ओ-नाख़ुन-ए-क़ातिल न आस्तीं पे निशाँ