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नज़्म
वो इल्म में अफ़लातून सुने वो शेर में तुलसीदास हुए
वो तीस बरस के होते हैं वो बी-ए एम-ए पास हुए
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
आदमी को 'अक़्ल-ओ-‘इल्म-ओ-आगही देता है कौन
चाँद को तारों को आख़िर रौशनी देता है कौन
मेहदी प्रतापगढ़ी
नज़्म
जो शम्अ-ए-इल्म-ए-मग़रिब सय्यद ने की थी रौशन
बिखरी हुई हैं जिस की किरनें हर अंजुमन में
फ़ानी बदायुनी
नज़्म
तुझ से शफ़क़त भी मिली तुझ से मोहब्बत भी मिली
दौलत-ए-इल्म मिली मुझ को शराफ़त भी मिली
मुनव्वर राना
नज़्म
हम मु’अर्रा हो के इन औसाफ़ से पस्ती में हैं
दौलत-ए-‘इल्म-ओ-‘अमल खो कर तही-दस्ती में हैं
बर्क़ देहलवी
नज़्म
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
बनाम-ए-इल्म-ओ-अदब जो पाया
अबदुल्लाह-इब्न-ए-उबय की दौलत अबू-जहल की वो ख़ासियत है
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
परतव रोहिला
नज़्म
अली-अहमद भी हैं आगाह आदाब-ए-हरम भी हैं
वक़ार-ए-होश भी अज़्मत-फरोज़-ए-इल्म-ओ-दानिश भी