aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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मर जाएँगे ज़ालिम की हिमायत न करेंगेअहरार कभी तर्क-ए-रिवायत न करेंगे
दर-ओ-दीवार-ए-हसरत में ज़रा सी भीड़ लग जाए तो चलते हैंख़बर भेजो
उस का जाना था कि वीराँ हो गई मेरी नज़रले गई हमराह अपने रौनक़-ए-दीवार-ओ-दर
मथुरा कि नगर है आशिक़ी कादम भरती है आरज़ू इसी का
दर-ओ-दीवार पर छाई है उदासी ग़म कीमहव-ए-हैरत है ख़ुशी दीदा-ए-हैराँ की तरह
महरम-ए-हसरत-ए-दीदार हो दीवार कोईन कोई साया-ए-गुल हिजरत-ए-गुल से वीराँ
अजब क्याअगर कोई आवारा तीनत भी हो मर्द-ए-कामिल
एक दल और इतने बार-ए-गराँऊँघते पेड़ सर-निगूँ गलियाँ
वक़्त की भटकी हुई अर्वाह का नौहा हूँ मैंरेत की अलवाह पर कुंदा कोई मदफ़ून दिन
बहार आई कि कोई झूमता मस्ताना आता हैघटा आती है या उड़ता हुआ मय-ख़ाना आता है
आसमाँ पर उदास बैठा चाँदरात-भर तारे गिनता रहता है
आफ़ात का तूफ़ान मुड़ा जब मिरी जानिबताराज किया घर को मिरे चश्म-ज़दन में
रोज़ जब धूप पहाड़ों से उतरने लगतीकोई घटता हुआ बढ़ता हुआ बेकल साया
मैं भी कुछ ख़्वाब सर-ए-शहर-ए-तमन्ना ले करसर में इरफ़ान-ए-ग़म-ए-ज़ात का सौदा ले कर
माज़ी की तजल्ली से मामूर ये काशानाएहसास-ए-मुसलमाँ को कर देता है दीवाना
बरतरी अपनी क्या जताता हैये कमाई तो तू भी खाता है
आरिज़-ए-वक़्त पे आँसू का लरज़ता क़तराजिस ने पत्थर को मोहब्बत के सिखाए अंदाज़
तूफ़ाँ ब-दिल है हर कोई दिलदार देखनागुल हो न जाए मिशअल-ए-रुख़्सार देखना
सहर की कलियाँ लुटी हुई हैंगुलों की शाख़ें झुकी हुई हैं
अब ये एहसास दम-ए-फ़िक्र-ए-सुख़न होने लगाअपनी ही नज़्मों का भूला हुआ किरदार हूँ मैं
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