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नज़्म
क़दम चालीसवीं मंज़िल में उस यूसुफ़ ने जब रक्खा
तो पहुँचा कारवान-ए-वहइ आवाज़-ए-जरस हो कर
नज़्म तबातबाई
नज़्म
तू हमेशा रहता है चीं-बर-जबीं अफ़्सुर्दा दिल
फिर किसी की बज़्म-ए-इशरत में न जा बहर-ए-ख़ुदा
नज़्म तबातबाई
नज़्म
वो मौसम है कि ख़ूबान-ए-चमन बनते-सँवरते हैं
ये आलम है कि जैसे रंग तस्वीरों में भरते हैं