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नज़्म
इक रोज़ मगर बरखा-रुत में वो भादों थी या सावन था
दीवार पे बीच समुंदर के ये देखने वालों ने देखा
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
ख़ामोशी मेरी साथी है और देखने वाला कोई नहीं
ऐ काश कहीं से आ जाते जीने का बहाना कोई नहीं
वसीम बरेलवी
नज़्म
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
तुम्हें प्यार है, तो यक़ीन दो,
मुझे न कहो, तुम्हें प्यार है, मुझे देखने की न ज़िद करो,
आरिफ़ इशतियाक़
नज़्म
जो हो देखने में टपकती हुई चंद बूँदें
मगर अपनी हद से बढ़े तो बने एक नद्दी बने एक दरिया बने एक सागर