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नज़्म
अली अकबर नातिक़
नज़्म
मिट्टी के बुत हरे नारियल चंदन लगा कोई मुखड़ा
वो धारों पर नाव खेता सूखा पंजर माँझी का
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
हैं कितने गीत जिन की लौ हवा से तेज़ होती है
खिंचा हो जिन का ख़त्त-ए-रहगुज़र तूफ़ाँ के धारों पर
मंज़ूर हुसैन शोर
नज़्म
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
नज़्म
है अभी तेग़ की धारों से गुज़रना बाक़ी
और नामूस-ए-वतन पर भी है मरना बाक़ी