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नज़्म
क्या तवक़्क़ो उन से रक्खें फ़ेल जो होते रहे
नक़्ल कर के दाग़ को दामन से जो धोते रहे
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
और तारे जब इस सागर पर कुछ हँसते हँसते आते हैं
मुँह नूर से अपना धोते हैं और ख़ालिक़ के गुन गाते हैं